Thursday, June 4, 2009

nasir kazmi ki shayyiri

दिल में एक लहर सी उठी है अभी
कोई ताज़ा हवा चली है अभी
शोर बरपा है खाना-ए-दिल में
कोई दीवार सी गिरी है अभी
कुछ तो नाज़ुक मिजाज हैं हम भी
और ये चोट भी नई है अभी
भरी दुनिया में जी नहीं लगता
जाने किस चीज़ की कमी है अभी
तू शरीक-ए-सुखन नहीं है तो क्या
हम-सुखन तेरी खामोशी है अभी
याद के बे-निशाँ जज़ीरों से
तेरी आवाज़ आ रही है अभी
शहर के बे-चिराग गलियों में
जिंदगी तुझको ढूंढती है अभी
सो गए लोग उस हवेली के
एक खिड़की मगर खुली है अभी
तुम तो यारो अभी से उठ बैठे
शहर में रात जागती है अभी
वक्त अच्छा भी आएगा 'नासिर'
ग़म न कर जिंदगी पड़ी है अभी

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