Saturday, June 6, 2009

sardaar anjuum ki shayyiri

ग़मों ने घेर लिया है, मुझे तो क्या ग़म है
मैं मुसकुरा के जियूँगा, तेरी खुशी के लिए
कभी कभी तू मुझे याद कर तो लेती है
सुकून इतना सा काफ़ी है, जिंदगी के लिए
यह वक्त जिसने, पलटकर कभी नहीं देखा
वेह वक्त अब भी, मुरादों के फल लाता है
वेह मोड़ जिसने हमें, अजनबी बना डाला है
उस एक मोड़ पे दिल, अब भी गुनगुनाता है
फिजायें रूकती हैं राहों पर, जिनसे हम गुज़रे
घटायें आज भी झुक कर, सलाम करती हैं
हर इक शब्, यह सुना है फलक से कुछ परियां
वफ़ा का चाँद, हमारे ही नाम करती हैं
यह मत कहो की, मुहबत से कुछ नही पाया
यह मेरे गीत, मेरे ज़ख्म-ए-दिल की रुलाई
जिन्हें तरसती रही, अंजुमन की रंगीनी
मुझे मिली है, मुकदर से ऐसी तन्हाई

No comments:

Post a Comment

wel come