Friday, June 5, 2009

ubaidullah alim ki shayyiri

तेरे प्यार में रुसवा हो कर जाएँ कहाँ दीवाने लोग
जाने क्या क्या पूछ रहे हैं यह जाने पहचाने लोग
हर लम्हा एहसास की सबा रूह में ढलती जाती है
ज़ीस्त का नशा कुछ कम हो तो हो आयें महखाने लोग
जैसे तुम्हें हमने चाहा है कौन भला यूँ चाहेगा
माना और बोहत आयेंगे तुमसे प्यार जताने लोग
यूँ गलियों बाज़ारों में आवारा फिरते रहते हैं
जैसे इस दुनिया में सभी आए हो उमर गंवाने लोग
आगे पीछे दायें बाएँ साए से लहराते हैं
दुनिया भी तो दस्त-ए-बला है हम ही नहीं दीवाने लोग
कैसे दुखों के मौषम आए कैसी आग लगी यारो
अब सहराओं से लाते हैं फूलों के नजराने लोग
कल मातम बे-कीमत होगा, आज इनकी तौकीर करो
देखो खून-ए-जिगर से क्या क्या लिखते हैं अफ़साने लोग

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