Friday, June 5, 2009

unknown

इस से पहले कि यें दुनिया मुझे रुसवा कर दे
तू मेरे जिसम मेरी रुह को अच्छा कर दे
किस कदर टूट रही है मेरी वहादत मुझ में
ए ! मेरी वह्दातों वाले मुझे युक्जा कर दे
यें जो हालत है मेरी मैंने बनाईं है मगर
जैसा तू चाहता है मुझे वैसा कर दे
मेरे लोगों को जहालत के अंधेरों से निकल
मेरी मुहबत को माहो-मेहरो सितारा कर दे
मुझे हर सिमत अँधेरा ही नज़र आता है
कुर्बानी को मेरी दीदा-ए-बीना कर दे
जाया होने से बचा ले मेरे माबूद मुझे
यें ना हो वक़त मुझे खेल तमशा कर दे
मैं मुसाफिर हूँ सो रस्ते मुझे रास आते है
मेरी मंजिल को मेरे वास्ते रस्ता कर दे
मुझको वो इलाम सिखा जिस से उजाले फैलें
मुझको वो इस्म पढ़ा जो मुझे जिंदा कर दे
मेरे हर फैसले में तेरी रजा शामिल हो
जो तेरा हुक्म हो वो मेरा इरादा कर दे
मेरी आवाज़ तेरी हमद से लबरेज़ रहे
बज्म-ए-कुनैन में जरी मेरा नगमा कर दे

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