आया था घर संवारने एहसान कर गया
बरबादियों का और भी सामान कर गया
अब तक रही उसकी याद मेरी जिंदगी के साथ
दो चार पल की मुझसे जो पहचान कर गया
आंखों ने जिस के शौंक में रातें सजायी थीं
ख्वाबों के अंजुमन वही वीरान कर गया
झोंका नसीम-ए-सुबह का आया तो था मगर
गुलशन की हर कली को परेशां कर गया
No comments:
Post a Comment