Friday, June 5, 2009

unknown

उससे अपने फर्द की फिकर न थी, वो जो मेरा वाकिफ-ऐ-हाल था...
वो जो उसकी सूबाई उरूज थी वोही मेरा वक्त-ए-ज़वाल था
कहाँ जाओगे मुझे छोड़ के मैं ये पूछ पूछ कर थक गया...
वो जवाब मुझे न दे सका वो तो ख़ुद सरापा-ए-सवाल था
वो मिला तो सदियों के बाद भी मेरे लबों पे कोई गिला न था..
उससे मेरी चुप न रुला दिया जिसे गुफ्तागो में कमाल था
वो मुझसे मिल कर रोया दिया मुझे वो फकत इतना न कह सका...
जिसे जाना था ज़िन्दगी वो तो सिर्फ़ वहम-ओ- ख्याल था

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