Friday, June 5, 2009

unknown

आ गई याद शाम ढलते ही
बुझ गया दिल चिराग जलते ही
खुल गए शहर-ए-ग़म के दरवाज़े
एक ज़रा सी हवा के चलते ही
कौन था तू के फिर न देखा तुझे
मिट गया ख्वाब आँख मलते ही
तू भी जैसे बदल सा जाता है
अक्स-ए-दिवार के बदलते ही

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