nikala mujhko zannat se
fareb-e-zindgi de kar..............
diya phir shaunq zannat ka ye hairani nahi jaati.......
Friday, June 5, 2009
unknown
आ गई याद शाम ढलते ही बुझ गया दिल चिराग जलते ही खुल गए शहर-ए-ग़म के दरवाज़े एक ज़रा सी हवा के चलते ही कौन था तू के फिर न देखा तुझे मिट गया ख्वाब आँख मलते ही तू भी जैसे बदल सा जाता है अक्स-ए-दिवार के बदलते ही
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