Thursday, June 4, 2009

unknown

गर नागवार थी मेरी ये हालत, तो क्यों कहा था लौट जाने को
मैकदा लगे है ज़न्नत, और साकी भी नहीं कहता जाने को
वाइज़ जब आए हमें रहगुजर-ए-खुल्द दिखलाने को
हमारे साथ ही भरते हैं अब, वो भी अपने पैमाने को
अपने आतिश-ए-हुस्न से कुछ इस तरह जलाया परवाने को
मैकदे में बुला के सबको,तुमसे बचा रहा हूँ जमाने को
कासिद-ए-फिरदौस हो के बस बेहिस निकला खुदा को सुनाने को
सुरूर-ए-मैकदा छोड़ के कोई तैयार नहीं ज़न्नत आने को
बद_खून-ए-खुदा आगाही नहीं, कोई जाए उससे बताने को
उश्काक बनाये तो बनाये,किसने कहा था मैखाना बनाने को

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