Tuesday, June 2, 2009

unknown

निगाह-ए-मस्त-ए-साकी का सलाम आया तो क्या होगा
अगर फिर तर्क-ए-तौबा का पयाम आया तो क्या होगा
हरम वाले तो पूछेंगे बता तू किस का बंदा है
खुदा से पहले लब पर उनका नाम आया तो क्या होगा
मुझे मंजूर उनसे मैं बोलूँगा मगर नासेह
अगर उनकी निगाहों का सलाम आया तो क्या होगा
मुझे तर्क-ए-तलब मंजूर लेकिन ये तो बतला दो
कोई ख़ुद ही लिए हाथों में जाम आया तो क्या होगा
मुहब्बत के लिए तर्क-ए-ताल्लुक ही ज़ुरूरी हो
मुहब्बत में अगर ऐसा मकाम आया तो क्या होगा
निगाह-ए-मस्त-ए-साकी का सलाम आया तो क्या होगा
अगर फिर तर्क-ए-तौबा का पयाम आया तो क्या होगा

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