Saturday, June 6, 2009

unknown

इस ज़माने से न हम कोई गिला रखेंगे
दिल लगायेंगे तो न शरत-ए-वफ़ा रखेंगे
न दिखायेंगे कभी दिल पे लगे ज़ख्म उन्हें
दर्द उठेगे मगर दिल को दबा रखेंगे
जान दे देंगे अगर एक इशारा कर दे
हम उसे अपने लिए भी न बचा रखेंगे
सब हटा देंगे तेरी राह की रुकावट हमदम
घर के दरवाज़े को हर वक्त खुल्ला रखेंगे
उनकी हर बात को भूले से न भूलेंगे कभी
उनकी यादों को भी सीने से लगा रखेंगे
टूट भी जायेगी उम्मीद जो तेरे आने की
एक दिया फिर भी हवाओं में जला रखेंगे

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