सच है, हकीक़त है, ख्वाब पर, क्यूँ लगता है
उसकी चाहत से मुझे डर, क्यूँ लगता है
उसके आने से ही ये, कैसी बहार आई है
खुश्बों से महके गुलशन जैसा, घर क्यूँ लगता है
दस्तक के लिए हाथ मेरे जब भी ऊठते हैं
हर डर उसी के दिल का डर, क्यूँ लगता है
लबों पे मुस्कान है, चश्म-ए-नम हैरान है
चेहरे पे आया आँचल फिर, तर क्यूँ लगता है
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