Thursday, June 4, 2009

unknown

इंसानियत तो मर गई…इंसान बाकी है
अच्छों का कुछ कुछ…निशाँ बाकी है

बे-हिस्सी के आज़बों से तंग आ के बिलाखिर
मकीं कूच कर गए…मकान बाकी है

कितनी ही मुश्किलों से गुज़रने के बा-वजूद
लगता अभी भी है के…. इम्तेहान बाकी है

कुछ भी तो न छोड़ा..फितरत के कारखाने में
ज़मीन तो सब ने बेच दी…आसमान बाकी है

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