Saturday, June 6, 2009

unknown

दम भर में सारे शेहर को बेदार कर गए
जो काम हम न कर सके वोह काम आप कर गए
सपनो को टूटते देखा है इस तरह
वोह इकरार करते करते इनकार कर गए
'इश्क' हम अजनबी शेहर में हैं मगर
कितना बुलंद मुहबत का मयार कर गए
तुम तो क्या ख़ुद से भी छुपायी है ,,,,
अपनी चाहत की दास्ताँ हमने
खुलने न पाये होंट कभी धूप छाओं में
आंखें मिलीं तो प्यार का इज़हार कर गए

No comments:

Post a Comment

wel come