ज़ख्मों से मैं चूर चूर हो गया हूँ
इस लिए मैं अपनों से दूर हो गया हूँ
मेरी मुहब्बत को वो न समझ सके
इस लिए ये लिखने पर मजबूर हो गया हूँ
फिर कहीं सकी का इल्ल्जाम न ठहरे
हाज़िर मैं पहले हजूर हो गया हूँ
न छेड़ मुझे साकी को होश ही नही
पी है इस कदर के मामूर हो गया हूँ
लोग खुशियों में भी खुश नही हो पाते
मैं ग़मों में भी इतना मसरूर हो गया हूँ
यूँ तो मेरी कोई पहचान न थी अनजान
बस तेरी इक दुआ से मश'हूर हो गया हूँ
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