मौसम को इशारों से बुला क्यूँ नही लेते
रूठा है अगर वोः तो माना क्यूँ नही लेते
दीवाना तुम्हारा है कोई गैर नही है
मचला है तो सीने से लगा क्यूँ नही लेते
तुम जाग रहे हो मुझे अच्छा नही लगता
चुपके से मेरी नींद चुरा क्यूँ नही लेते
ख़त लिख के कभी और कभी ख़त को जला कर
तन्हाई को रंगीन बना क्यूँ नही लेते
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