Sunday, May 10, 2009

"Daag" ki shayyiri

ज़माना बहुत बदगुमान हो रहा है
किसी शख्स का इम्तिहान हो रहा है
सुरीली सदायें हैं एक शोख सी कि
इलाही ! ये जलसा कहाँ हो रहा है
बहुत हसरत आती है मुझको ये सुनकर
किसी पर कोई मेहरबान हो रहा है
तेरे ज़ुल्म-ए-पिन्हाँ अभी कौन जाने ?
फ़क़त आसमान आसमान हो रहा है
इन आँखों ने इस दिल का कया भेद खोला ?
कि मुज़्तर मेरा राजदां हो रहा है
सुनूँ कया खबर जशन-ए-इशरत का कासिद ?
जहाँ हो रहा है वहां हो रहा है
वो हाल-ए-तबियात जो बरसों छुपाया
हर एक शख्स से अब बयान हो रहा है
कोई उड़ के आया, कोई छुप के आया
पशेमान तेरा पासबान हो रहा है
कहीं दो घड़ी आप शबनम में सोये
जो रुख पर अर्क दुर्-फिशां हो रहा है
ये बेहोशियाँ 'दाग' ये खवाब-ए-गल्फ्लत
खबर भी है जो कुछ वहां हो रहा है

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