Sunday, May 10, 2009

dard ki shayyiri

तोहमतें चंद अपने जिम्मे धर चले
जिस लिए आये थे सो हम कर चले
जिंदगी है या कोई तूफान है !
हम तो इस जीने के हाथों मर चले
कया हमें कम इस गुलों से, ऐ ! सबा
एक दम आये इधर उधर चले
दोस्तों देखा तमाशा, यां का सब
तुम रहो खुश हम तो अपने घर चले
आह, बस जी मत जला, तब जानिए
जब कोई अफसुं तेरा, उस पर चले
शमा कि मानिंद हम इस बज़म में
चश्म'नम आये थे, दामन'तर चले
ढूंढ़ते हैं आपसे उसको परे
शेख साहिब छोड़ घर, बहार चले
हम जहाँ में आये थे तन्हावाले
साथ अपने अब उसे ले कर चले
जन शरर ऐ ! हस्ती-ए-बेबुद यां
बारे हम भी अपनी बारी भर चले
एक मैं दिल रेश हूँ, वैसा ही दोस्त
ज़ख्म कितनों का सुना है भर चले
हम ना जाने पाए बाहर आप से
वो भी अरे आ गया जिधर चले
साकिया यां लग रहा है चल चलो
जब तलक बस चल सके सागर चले
'दर्द' कुछ मालूम है ये लोग सब
किस तरफ से आये थे किधर को चले

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