Sunday, May 10, 2009

ghalib ki shayyiri

घर जब बना लिया है तेरे दर पर कहे बगैर !
जानेगा अब भी तू न मेरा घर कहे बगैर !
कहते हैं, जब रही न मुझे ताक़त-ए-सुखन[strength to speak]
जानु किसी के दिल की मैं क्यूँकर कहे बगैर !
काम उसे आ पड़ा है की जिसका जहाँ में
लेवा न कोई नाम 'सितमगर' कहे बगैर !
जी में ही कुछ नहीं है हमारे, वर्ना हम
सर जाए या रहे, न रहे पर कहे बगैर !
छोडूंगा मैं न उस बुत-ए-काफिर का पुजना
छोड़े न खलक को मुझे काफिर कहे बगैर !
मकसद है नाज़-ओ-घमज़ा, वाले गुफ्तुगू में काम
चलता नहीं है, दसना-ओ-खंजर कहे बगैर !
हर चाँद हो मुशाहित[God]-ए-हक की गुफतगू
बनती नहीं है बाद[wine]-ए-सागर कहे बगैर !
बहरा हूँ मैं तो चाहिए दूना हो इल्ताफात[mercy]
सुनता नहीं हूँ बात मुक़रर[again] कहे बगैर !
'ग़ालिब' न कर हजूर में तू बार-बार 'अर्ज़
ज़ाहिर है तेरा हाल सब उन पर कहे बगैर !

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