कमर बांधे हुए चलने पे यां सब यार बैठे हैं
बोह्त आगे गए, बाक़ी जो हैं तैयार बैठे हैं
न छेड़ ए निकहत-ए-बाद-ए-बहारी, राह लग अपनी
तुझे अटखेलियां सूझी हैं, हम बेज़ार बैठे हैं
तसव्वुर अर्श पर है और सर है पा-ए-साक़ी पर
ग़र्ज़ कुछ और धुन में इस घड़ी मै-ख़्वार बैठे हैं
यह अपनी चाल है उफ़तादगी से इन दिनों पहरों
नज़र आया जहां पर साया-ए-दीवार बैठे हैं
भला गर्दिश फ़लक की चैन देती है किसे इंशा
ग़नीमत है कि हम सूरत यहां दो चार बैठे हैं
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