Friday, May 29, 2009

khumar barabanqwi ki shayyiri

हारा है इश्क और दुनिया थकी है
दिया जल रहा है हवा चल रही है
सुकून ही सुकून है, खुशी ही खुशी है
तेरा ग़म सलामत मुझे क्या कमी है
वो मौजूद हैं और उनकी कमी है
मुहब्बत भी तन्हाई--दाइमीं है
खटक गुदगुदी का मज़ा दे रही है
जिसे इश्क कह्ते हैं शायद यही है
चरागों के बदले मकान जल रहे हैं
नया है ज़माना, नई रौशनी है
ज़फाओं पे घुट घुट के चुप रहने वालो
खामोशी जफ्फओं की ताईद भी है
मेरे राहबर मुझको गम-राह कर दे
सुना है के मंजिल करीब गई है
'खुमार'--बालानोश तू और तौबा
तुझे जाहिदों की नज़र लग गई है

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