तसकीन-ए-दिल महजून ना हुई, वो सई-ए-करम फरमा भी गये
इस सई-ए-करम[favour] को कया कहिये, बहला भी गये तड़पा भी गये
इक अर्ज़-ए-वफ़ा भी कर ना सके, कुछ कह ना सके, कुछ सुन ना सके
यहाँ हम ने जबान ही खोली थी, वहां आँख झुकी शरमा भी गये
आशुफ्ताफे-ए-वहशत[height of madness] की कसम, हैरत की कसम,हसरत की कसम
अब आप कहें कुछ या ना कहें, हम राज़-ए-तबसुम पा भी गये
रूदाद-ए-गम-ए-उल्फत उनसे हम कया कहते, क्यूँकर कह्ते
इक हर्फ़ ना निकला होंठों से और आँखों में आंसों आ भी गये
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