आशना थे ख़ुद से, फिर न-आशना होते गए
हो भला इस इश्क का, हम क्या से क्या होते गए !
अश्क-ए-ग़म बहते रहे और नक्श-ए-पा होते गए
जिंदगी के क़र्ज़ सारे यूँ अदा होते गए
न-रसाई का फ़साना क्या कहें, किस से कहें ?
मंजिलें आयीं तो हूँ बे-दस्त-ओ-पा होते गए
इत्तिफाकान अपनी हालत पर नज़र जब जब पड़ी
हम निगाहों में ख़ुद अपनी बे-रिदा होते गए
रेगज़ार-ए-आरजू में वक्त वो हम पर पड़ा
राहज़न चेहरे बदल कर रहनुमा होते गए
अहल-ए-दुनिया की ज़रा देखो करम-फ़रमईयां
आड़ में ईमान की बन्दे भी खुदा होते गए
इश्क की बेताबियों की लाज्ज़तें मत पूछिये
नाला-हाय आरजू हर्फ़-ए-दुआ होते गए
ये कहो 'सरवर' ! तुम्हारी इनकिसारी क्या हुई ?
तुम भी दुनिया की तरह क्यूँ ख़ुद-नुमाई होते गए ?
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