अपनी तन्हाई मेरे नाम पे आबाद करे
कौन होगा जो मुझे उसकी तरह याद करे
दिल अजब शहर के जिस पर भी खुला दर इसका
वोह मुसाफिर इससे हर सिम्त से बर्बाद करे
अपने कातिल की ज़हानत से परेशां हूँ मैं
रोज़ एक मौत नए तर्ज़ से इजाद करे
सलब-ऐ-बनाई के एह्काम मिले हैं जो कभी
रौशनी चूने की ख्वाहिश कोई शब्-जाद करे
सोच रखना भी जराइम में है शामिल अब तोह
वही मासूम है हर बात पे जो साद करे
जब लहू बोल पड़े इसके गवाहों के खिलाफ
काजी-ए-शहर कुछ इस बाब में इरशाद करे
उसकी मुठी में बोहोत रोज़ रहा मेरा वजूद
मेरे साहिर से कहो अब मुझे आज़ाद करे
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