Saturday, May 30, 2009

unknown

ज़ाहिर की आँख से न तमाशा करे कोई
हो देखना तो दीदा-ऐ-दिल वा करे कोई
अरे बैठे क्या समझ के भला तूर पर कलीम
ताक़त हो दीद की तो तकाज़ा करे कोई
इलाही तेरी चौखट पर भिखारी बन के आया हूँ
सरापा फक्र हूँ, इज्ज़-ओ-नदामत साथ लाया हूँ
भिखारी वो के जिस के पास झोली है न पियाला है
भिखारी वो जिसे हिरस-ओ-हवास ने मार डाला है
माता-ऐ-दीं-ओ-दानिश नफस के हाथों से लुटवा कर
सुकून-ए-क़ल्ब की दौलत हवास की भेंट चढवा कर
लुटा कर सारी पूँजी गफलत-ओ-इसयाँ की दलदल में
सहारा लेने आया हूँ तेरे काबे के आँचल में

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