किसे पुकारें हम इस हुजूम-ऐ-ग़म में
के सब ही हमारे अजमाए हुए हैं
तुम ही ने हमें कर दिया तन्हा
वरना हम तो ताल्लुक निभाए हुए हैं
धीमे धीमे आंसू दिल से गिरते
के हम अपना ग़म सब से छुपाये हुए हैं
उन् शानो तक अब रसाई न रही
जिन शानो पे आंसू बहाए हुए हैं
हम करें अब किस पर कैसे भरोसा
के ज़माने से धोखे खाए हुए हैं
खुशियों से भी अब तो लगता है डर
इस कदर ज़ख्म हम ने खाए हुए हैं
अब दस्त-ऐ-शंसाई न बढायेंगे
हम के ज़माने भर से ठुकराए हुए हैं
No comments:
Post a Comment