ऐ जज्बा-ए-दिल गर मैं चाहूँ हर चीज़ मुकाबिल आ जाए
मंजिल के लिए दो गाम चलूँ और सामने मंजिल आ जाए
कश्ती को खुदा पर छोड़ भी दे, कश्ती का खुद खुदा हाफिज़ है
मुश्किल तो नहीं इन मौजों में बहता हुआ साहिल आ जाए
ऐ दिल की लगी चल यूँही सही, चलता तो हूँ उनकी महफिल में
उस वक्त मुझे चौंका देना जब रंग पे महफिल आ जाए
ऐ राहबर-ए-कामिल चलने को तैयार तो हूँ पर याद रहे
उस वक्त मुझे भटका देना जब सामने मंजिल आ जाए
हाँ याद मुझे तुम कर लेना आवाज़ मुझे तुम दे लेना
इस राह-ए-मुहब्बत में कोई दरपेश जो मुश्किल आ जाए
अब क्यूँ ढूँढूं वो चश्म-ए-करम होने दे सितम बला-ए-सितम
मैं चाहता हूँ ऐ जज्बा-ए-ग़म मुश्किल पस-ए-मुश्किल आ जाए
इस जज्बा-ए-दिल के बारे में एक मशवरा तुम से लेता हूँ
उस वक्त मुझ पे क्या लाजिम है जब तुझपे मेरा दिल आ जाए
ऐ बर्क-ए-तजल्ली क्या तुने मुझको भी मूसा समझा है
मैं तूर नहीं जो जल जाऊं जो चाहे मुकाबिल आ जाए
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