Friday, June 5, 2009

faraz ki shayyiri

जो भी दुःख याद न था याद आया
आज क्या जानिए क्या याद आया
फिर कोई हाथ है दिल पर जैसे
फिर तेरा अहद-ए-वफ़ा याद आया
जिस तरह ढूंढ़ में लिपटे हुए फूल
एक एक नक्श तेरा याद आया
ऐसी मजबूरी के आलम में कोई
याद आया भी तो क्या याद आया
ऐ रफीक सर-ए-मंजिल जाकर
क्या कोई आबलापा[पैर के छले] याद आया
याद आया था बिछड़ना तेरा
फिर नहीं याद के क्या याद आया
जब कोई ज़ख्म बना दाग बना
जब कोई भूल गया याद आया
ये मुहब्बत भी है क्या रोग 'फ़रज़'
जिसको भूले वो सदा याद आया

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