दौर-ए-अफ्लाक का शबाब है तू
अफ्ताबों का आफताब है तू
रूप ऐसा हसीन जैसे गुनाह
खल्क का हासिल-ऐ-सवाब है तू
तुझसे जोबन उजाली रातों का
मह्ताबों का महताब है तू
और जेरे-शफक चिरागां हो
आज यूँ मयिले-हिजाब है तू
ये सितारे तेरे पसीने के
शब् का दहका हुआ शबाब है तू
तू जो सूरत पकड़ ले है वो ख्याल
याक-ब-याक जाग उठे वो ख्वाब है तू
जो बहारों के दिल से उठते हैं
उन्न्हीं शोलों का पेचो-ताब है तू
आँख पड़ती है एक ज़माने की
बज्म-ऐ-इमकान में इंतेखाब है तू
जैसे नग्मे-लब-ऐ-'फिराक' पा' सोया
सेज पर यूँ यूँ ही महव-ख्वाब है तू
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