Monday, June 1, 2009

firaq gorkhpuri ki shayyiri

कभी जब तेरी याद आ जाए है
दिलों पर घटा बन के छा जाए है
शब्-ऐ-यास में कौन छुप कर नदीम[दोस्त] मेरे हाल पर मुसकुरा जाए है
मुहब्बत में ऐ मौत-ए-जिदंगी मरा जाए है या जीया जाए है
पलक पर पासे-तरके-ग़म[दुःख के आंसू] घाः-घाः सितारा कोई झिलमिला जाए है
तेरी याद शबः-ए-बे_ख्वाब में सितारों की दुनिया बसा जाए है
जो बे_ख्वाब रखे है ता_जिंदगी वही ग़म किसी दिन सुला जाए है
न सुन मुझसे हमदम मेरा हाल-ए-जार दिले-नातवां सनसना जाए है
ग़ज़ल मेरी खींचे है ग़म की शराब पीये है वो जिस से पिया जाए है
मेरी शायरी जो है जाने-नशात ग़मों के खजाने लुटा जाए है
मुझे छोड़ कर जाए है तेरी याद की जीने का एक आसरा जाए है
मुझे गुमराही का नही कोई खौफ तेरे घर को हर रास्ता जाए है
सुनाएँ तुम्हें दास्ताँ-ऐ-'फिराक'
मगर कब किसी से सुनी जाए है

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