Monday, June 1, 2009

firaq gorkhpuri ki shayyiri

मैं होश-ऐ-अनादिल[बुलबुल की nature] हूँ मुश्किल है संभल जाना
ऐ बाद-ए-सबा मेरी करवट तो बदल जाना
तकदीर-ए-मुहब्बत हूँ मुश्किल है बदल जाना
सौ बार संभल कर भी मालुम संभल जाना
उस आँख की मस्ती हूँ ऐ बदकशो[शारबी] जिसका
उठ कर सर-ए-मय-खाना मुमकिन है बदल जाना
अय्याम-ए-बहारां में दीवानों के तेवर भी
जिस सम्त नज़र उठी आलम का बदल जाना
घनघोर घटाओं में सरशार फिजाओं में
मखमूर हवाओं में मुश्किल है संभल जाना
हूँ लग्ज़िशें मस्ताना[लडखडाना] मैखाना-ए-आलम में
बर्क़-ए-निगाह-ए-साकी कुछ बच के निकल जाना
इस गुलशन-ए-हस्ती में कम खिलते हैं गुल ऐसे
दुनिया महक उठेगी तुम दिल को मसल जाना
मैं साज-ऐ-हकीक़त हूँ सोया हुआ नगमा था
था राज़-ए-निहा कोई परदों से निकल जाना
हूँ नखत-ए-मस्ताना गुलज़ार-ए-मुहब्बत में
मदहोश-ए-आलम है पहलु का बदल जाना
मस्ती में लगावत से उस आँख का ये कहना
मय_खवर की नियत हूँ मुमकिन है बदल जाना
जो तर्ज़-ए-ग़ज़ल_गोई मोमिन ने तरह की थी
साद-हैफ 'फिराक' उसका सद-हैफ बदल जाना

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