Monday, June 1, 2009

ghalib ki shayyiri

सादगी पर उसकी मर जाने की हसरत दिल में है
बस नहीं चलता की फिर खंजर काफ-ए-कातिल में है
देखना तकदीर की लज्ज़त की जो उसने कहा
मैंने ये जाना की गोया ये भी मेरे दिल में है
गरचे है किस किस बुरे से वले बयान हम
जीकर मेरा मुझसे बेहतर है की उस महफिल में
है बस हुजूम-ए-न_उम्मीदी खाक में मिल जायेगी
ये जो इक लज्ज़त हमारी साईं-ए-बेहासिल में है
राह-ए-राह क्यूँ खेंचिये वामांदगी को इश्क है
उठ नहीं सकता हमारा जो क़दम मंजिल में है
जलवा जार-ए-आतश-ए-दोज़ख हमारा दिल सही
फितना-ए-शोर-ए-क़यामत किस की आब-ओ-गिल में है
है दिल-ऐ-शोरीदा-ऐ-गालिब तिलिस्म-ऐ-पेच-ओ-ताब
रहम कर अपनी तमना पर की किस मुश्किल में है

No comments:

Post a Comment

wel come