फिर कुछ इक दिल को बे-करारी है
सीना जोया-ए-ज़ख्मएकारी है
फिर जिगर खोदने लगा नाखून
आमद-ए-फसल-ए-लाला-कारी है
किबला-ए-मकसद-ए-निगाह-ए-नियाज़
फिर वोही परदा-ए-अमारी है
चश्म-ए-दल्लाल-ए-जींस-ए-रुसवाई
दिल खरीदार-ए-ज़ौक़-ए-ख्वारी है
वोही साद रंग लाला फरसाई
वोही साद गो ना अश्कबारी है
दिल हवाए खिराम-ए-नाज़ से फिर
मेह्शारिस्तान-ए-बेक़रारी है
जलवा फिर अर्ज़-ए-नाज़ करता है
रोज़-ए-बाज़ार-ए-जान सिपारी है
फिर उसी बेवफा पे मरते हैं
फिर वोही जिंदगी हमारी है
फिर खुला है दर-ए-अदालत-ए-नाज़
गर्म बाज़ार-ए-फोजदारी है
हो रहा है जहाँ में फिर अँधेर
जुल्फ की फिर सरिश्तादारी है
फिर दिया पारा-ए-जिगर ने सवाल
एक फरियाद-ओ-आह-ओ-जारी है
फिर हुए हैं गवाह-ए-इश्क तलब
अश्कबारी का हुक्म जारी है
दिल-ओ-मिज़ह्गान का जो मुक़दमा था
आज फिर उस्सकी रुबकारी है
बेखुदी बेसबब नहीं 'गालिब'
कुछ तो है जिस की परदादारी है
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