Friday, June 5, 2009

ghalib ki shayyiri

दिया है दिल अगर उसको,बशर[आदमी] है क्या कहिये !
हुआ रकीब हो, नामबर है, क्या कहिये !
ये जिद की आज न आवे और आए बिन न रहे
कजा[फटे] से शिकवा हमें किस कदर है क्या कहिये
रहे हैं यूँ गाह[time]-ओ-बेगाह की कू[street]-ए-दोस्त को अब
अगर न कहिये की दुश्मन का घर है, क्या कहिये
ज़ह[child]-ए-करिश्मा की यूँ दे रखा है हमको फरेब
की बिन कहे ही उन्हें सब ख़बर है, क्या कहिये
समझ के करते हैं बाज़ार में वोह पुरसिश[enquiry]-ए-हाल
की यह कहे की सर-ए-रहगुज़र है, क्या कहिये
तुम्हें नहीं है सर-ए-रिश्ता-ए-वफ़ा का ख्याल
हमारे हाथ में कुछ है, मगर क्या कहिये
उन्हें सवाल पे ज़ोअम[pride]-ऐ-जूनून है, क्यूँ लड़िये
हमें जवाब से कता[break]-ए-नज़र[to ignore] है, क्या कहिये
हसद[envy] सज़ा-ए-कमल-सुखन है, क्या कहिये
सितम, बहा[value]-ऐ-माता'अ[valuable]-ए-हुनर है, क्या कहिये
कहा है किसने की "गालिब" बुरा नहीं लेकिन
सिवाय इस के की आशुफ्ता[mentally deranged]_सर है क्या कहिये

No comments:

Post a Comment

wel come