Thursday, June 4, 2009

insha allah khan ki shayyiri

कमर बांधे हुए चलने पे याँ सब यार बैठे हैं
बोहत आगे गये, बाक़ी जो हैं तैयार बैठे हैं
न छेड़, ऐ निक'हत-ए-बाद-ए-बाहरी ! राह लग अपनी
तुझे अठखेलियाँ सूझी हैं, हम बे-जार बैठे हैं
अखायल उंनका पड़े है 'अर्श-ऐ-आज़म से कहीं साकी !
ग़रज़ कुछ धुन में इस घड़ी मय-ख्वार बैठे हैं
कहे हैं सबर किस को ? आह ! नंग[disgrance]-ओ-नाम[respect] है क्या शै
ग़रज़ रो पीट कर इन् सबको, हम यक बार बैठे हैं
कहीं बोसे की मत जुर्रत दिला बैठियो उंनसे
अभी इस हद को वो काफ़ी नहीं होशियार बैठे हैं
नजीबों का अजाब कुछ हाल है इस दौर में, यारो !
जिसे पूछो, यही कह्ते हैं, हम बेकार बैठे हैं
नई यह वज़ा[style] शरमाने की सीखी आज है तुमने
हमारे पास, साहब ! वरना, यूँ सौ बार बैठे हैं
कहाँ गर्दिश फलक की चैन देती है, सुना 'इंशा'
ग़नीमत है की हम-सूरत यहाँ दो चार बैठे हैं

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