Thursday, June 4, 2009

khumar barabanqwi ki shayyiri

हम उन्हें वो हमें भुला बैठे
दो गुनाहगार ज़हर खा बैठे
हाल-ए-ग़म कह के ग़म बढ़ा बैठे
तीर मारे थे तीर खा बैठे
आंधियों जाओ अब करो आराम
हम ख़ुद अपना दिया बुझा बैठे
जी तो हल्का हुआ मगर यारों
रो के लुत्फ़-ए-ग़म गँवा बैठे
बे-सहारों का हौसला ही क्या
घर में घबराए, दर पे आ बैठे
उठ के एक बेवफा ने दे दी जान
रह गए सारे बा-वफ्फा बैठे
जब से बिच्च्दे वो, मुस्कुराए न हम
सब ने छेड़ा तो लब हिला बैठे
हश्र का दिन अभी है दूर 'खुमार'
आप क्यूँ जाहिदों में जा बैठे

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