Thursday, June 4, 2009

muntazir saleem ki shayyiri

जिस्म के नेजे पर[on spear head] जो रखा है
उस मेरे सर में जाने क्या क्या है
बुत बनाया मेरे हुनर ने मुझे
मेरे हाथों ने मुझको तोडा है
बस्तियां उजड़ी हैं तो सनाटा
मेरी आवाज़ में समाया है
मैं भी बे-जड़[without roots] का पेड़[tree] हूँ शायद
मुझको भी डर हवा से लगता है
शहर में कुछ इमारतों के सिवा
अब मेरा कौन मिलने वाला है
कहने-सुनने को कुछ नहीं बाक़ी
मिलना-जुलना अजब सा लगता है

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