Friday, June 5, 2009

nasir kazmi ki shayyiri

दुःख की लहर ने छेड़ा होगा
याद ने कंकर फेंका होगा
आज तो मेरा दिल कहता है
तू इस वक़्त अकेला होगा
मेरे चूमे हुए हाथों से
औरों को ख़त लिखता होगा
भीग चली अब रात की पलकें
तू अब थक कर सोया होगा
रेल की गहरी सीटी सुन कर
रात का जंगल गूंजा होगा
शहर के खाली इस्टेशन पर
कोई मुसाफिर उतरा होगा
आँगन में फिर चिडियां बोलें
तू अब सो कर उठता होगा
यादों की जलती शबनम से
फूल सा मुखडा धोया होगा
मोती जैसी शक्ल बनाकर
आईने को ताकता होगा
शाम हुई अब तू भी शायद
अपने घर को लौटा होगा
नीली धुंधली खामोशी में
तारों की धुन सुनाता होगा
मेरा साथी शाम का तारा
तुझसे आँख मिलाता होगा
शाम के चलते हाथ ने तुझको
मेरा सलाम तो भेजा होगा
प्यासी कुर्लाती[restless] कून्जों[bird] ने
मेरा दुःख तो सुनाया होगा
मैं तो आज बहुत रोया हूँ
तू भी शायद रोया होगा
‘नासिर’ तेरा मीत पुराना
तुझको याद तो आता होगा

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