Monday, June 1, 2009

qamar ki shayyiri

फिर कहोगे तुम मुकाबिल को सज़ा के वास्ते
आईने को हाथ से रख दो खुदा के वास्ते
काबा--दिल को ताको तुम जफ़ा के वास्ते
बुतों ये घर खुदा का है खुदा के वास्ते
या इलाही किस तरफ़ से पस है बाब-ए-असर
कौन सा नज़दीक है रास्ता दुआ के वास्ते
कह गए क्या देख कर नब्जों को क्या जाने तबीब
हाथ उठाये हैं अजीजों ने दुआ के वास्ते
तुम भी नाम-ए-खुदा हो मशक-ए-ज़ुल्म-ओ-जोर हो
आसमां से मशवरा कर लो ज़फा के वास्ते
मुझको उस मिटटी से खालिक ने बनाया है "कमर"
रह गयीं थी जो अज़ल के दिन वफ़ा के वास्ते

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