लाख अब याद की, एहसास की पिन्हाई मिले
इन खलाओं में कहाँ जिस्म सी रानाई मिले
इतने अरजाँ तो कभी हम न हुए थे अब तक
जिस तरफ़ जाएँ, वहीँ अपनी शानासाईँ मिले
बस गए हैं वो खाद-ओ-खाल नज़र में ऐसे
अब तो हर शकल में उसकी शकल की परछाई मिले
महफिलें इतनी बढ़ी, भूल गए अपना वजूद
अब तो कह्ते हैं घड़ी भर ही को तन्हाई मिले
इन् के होंटों से भी मेरी ही कहानी उभरे
इन् धड्कों को अगर कुव्वत-ए-गोयाई मिले
कितने खाली हुए दमन-ए-नज़र, जायब-ए-ख्याल
अब तो ढूंढें से भी यादों की न परछाई मिले
कोई भी हो न सका मेरे बिखरने में शरीक
'जान' इस शहर में सब लोग तमाशाई मिले
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