Monday, June 1, 2009

firaq gorkhpuri ki shayyiri

किसी से छूट के शाद और किसी से मिल के ग़मगीन
'फिराक' तेरी मुहब्बत का कोई ठिकाना नहीं
यूँ-ही-सा था कोई जिसने मुझे मिटा डाला
न कोई नूर का पुतला न कोई जोहरा-जबीं
जो भूलती भी नहीं याद भी नहीं आती
तेरी निगाह ने क्यूँ वो कहानियाँ न कही
लबे-निगार है या नगमा-ए-बहार की लौ
सुकूते-नाज़ है या कोई मुत्रिबे-रंगीन[beauty lover singar]
शुरू-ए-जिंदगी-ए-इश्क का वो पहला ख्वाब
तुम्हें भी भुला चुका है मुझे भी याद नहीं
हज़ार शुक्र की मायूस कर दिया तुने
ये और बात की तुझसे बड़ी उमीदें थीं
अगर बदल न दिया आदमी ने दुनिया को तो
जान लो की यहाँ आदमी की खैर नहीं
हुनर तो खैर हुनर ऐब से भी जलते हैं
फुगाँ[आह] की अहल-ऐ-ज़माना है किस कदर कम्बीन[अदूरदर्शी]

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